रविंद्र मुंडेतिया | 7 अगस्त 2025
मुंबई को भारत की आर्थिक राजधानी कहा जाता है। चमकती हुई स्काईलाइन, समंदर किनारे का नज़ारा और गगनचुंबी इमारतें इस शहर की पहचान हैं। हम जब भी मुंबई का नाम सुनते हैं, तब हमारे दिमाग में मुंबई की एक खूबसूरत तस्वीर सामने आती है। लेकिन इस चमक-धमक के पीछे मुंबई का एक ऐसा चेहरा भी है जिस पर लोग आमतौर पर बात नहीं करते हैं। मुंबई की वह जगह जो आज लाखों लोगों की परेशानी बनी हुई है। उस जगह का नाम है—देवनार डंपिंग ग्राउंड।
क्या कभी आपने सोचा है? अगर हम अपने घर का कचरा घर से बाहर न फेंकें तो क्या होगा? इसका सीधा-सा जवाब है। घर में बदबू फैल जाएगी, मक्खियाँ आएँगी, साँस लेने में दिक्कत होगी और अंत में हम बीमार पड़ जाएंगे। अब इससे बचने के लिए हम क्या करते हैं? हम अपने घर के कूड़े को बाहर कूड़ेदान में डाल देते हैं। इसके बाद सफाई कर्मचारी उस कचरे को किसी एक जगह पर डाल देता है। लेकिन इससे कूड़ा तो खत्म नहीं हो जाता। हाँ, फिर बदबू नहीं आती है, लेकिन उन लोगों को बदबू आती होगी जो उस डंपिंग ग्राउंड के आसपास रहते हैं।
मुंबई और एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा डंपिंग ग्राउंड यानी देवनार डंपिंग ग्राउंड के आसपास रहने वाले लोगों की ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही है। यह डंपिंग ग्राउंड मुंबई का सबसे पुराना और सबसे बड़ा कचरा जमा करने का स्थान है, जहाँ रोज़ाना हज़ारों टन कचरा फेंका जाता है, लेकिन यह सिर्फ कचरे का ढेर नहीं है, बल्कि मुंबई के पर्यावरण, समाज और स्वास्थ्य पर मंडराता एक गंभीर ख़तरा है। 132 हेक्टेयर में फैला यह डंपिंग ग्राउंड, आसपास रहने वाले लाखों लोगों की सेहत और ज़िंदगी को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
मुंबई का देवनार डंपिंग ग्राउंड
देवनार डंपिंग ग्राउंड मुंबई के पूर्वी उपनगरों में स्थित है। 1927 में शुरू हुआ यह डंपिंग ग्राउंड आज एशिया के सबसे बड़े डंपिंग ग्राउंड में गिना जाता है। 20वीं सदी की शुरुआत में, मुंबई में गोवंडी, देवनार, शिवाजीनगर और मानखुर्द इलाक़े खुले मैदान थे और यहाँ बहुत कम आबादी थी। हालाँकि, समय के साथ इस इलाक़े में बस्तियाँ बढ़ने लगीं और 1990 के दशक में यहाँ तेज़ी से शहरीकरण हुआ। इस शहरीकरण के बाद यहाँ लाखों की संख्या में लोग रहने लगे। मुंबई रोज़ाना करीब 9,400 से 10,000 टन ठोस कचरा पैदा करता है। सालों से जमा होता कचरा अब पहाड़ का रूप ले चुका है। कचरे के ढेर से निकलती ज़हरीली गैसें, धुआँ और बदबू आसपास के इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों की ज़िंदगी को सीधे प्रभावित कर रही हैं।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर
जब मैं देवनार डंपिंग ग्राउंड के आसपास के इलाकों में घूमा, तब मुझे यहाँ के लोगों की समस्या के बारे में पता चला। डंपिंग ग्राउंड बड़ा होने की वजह से यहाँ पर पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ गया है। यह प्रदूषण आज लोगों की सबसे बड़ी मुसीबत बना हुआ है। जो इलाका ग्राउंड के सबसे नज़दीक है, वहाँ पर चौबीसों घंटे बस कचरे की बदबू आती रहती है। मैं शिवाजी नगर, जो डंपिंग ग्राउंड के क़रीब एक इलाका है, वहाँ कुछ देर ठहरा; उसमें ही मेरी हालत खराब हो गई थी, तो सोचिए जो लोग सालों से इसके नज़दीक रह रहे हैं, उन पर क्या असर होता होगा? आसपास की झुग्गियाँ मुंबई में रहने के लिए सबसे सस्ते लेकिन गंदे विकल्प उपलब्ध कराती हैं। यहाँ घूमने पर पता चला कि कई प्रवासी, ज़्यादातर उत्तर भारतीय मज़दूर, मुस्लिम अल्पसंख्यक और दलित इन झुग्गियों में बड़ी संख्या में रहते हैं।

बस्तियाँ जैसे शिवाजी नगर और बैंगनवाड़ी में रहने वाले लोगों को सबसे ज़्यादा नुकसान झेलना पड़ रहा है। हवा में लगातार फैला धुआँ और बदबू बच्चों में अस्थमा, बुज़ुर्गों में फेफड़ों की बीमारी और महिलाओं में त्वचा-समस्याओं का कारण बन गया है। लिहाज़ा यही कारण है कि देवनार डंपिंग ग्राउंड के पास रहने वाले लोगों की औसत आयु अब सिमटकर मात्र 40 वर्ष हो गई है। कचरे से निकली मीथेन गैस आग को न्योता दे रही है। 2016 में इसी मीथेन गैस ने पूरी मुंबई की हवा को ज़हरीला बना दिया था। ऐसी ख़तरनाक ज़हरीली गैस देवनार, शिवाजीनगर, तिलकनगर, रमाबाई अंबेडकर नगर, मानखुर्द-गोवंडी, चेंबूर और कभी-कभी घाटकोपर तक फैल जाती है।
स्थानीय लोगों का दर्द
एक स्थानीय व्यक्ति से जब मैंने पूछा कि “डंपिंग ग्राउंड की वजह से लोगों को कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?” उसने कहा—”यहाँ आपको ज़्यादातर लोगों की त्वचा पर दाद-वगैरह दिख जाएँगे। लोगों को साँस लेने में दिक्कत होती है। आपको टीबी, कैंसर जैसे मरीज़ मिल जाएंगे। यहाँ पर सरकारी दवाखाना भी नज़दीक नहीं है। लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि वे आख़िरी स्टेज पर आने के बावजूद दवाखाना नहीं जाते हैं।”
एक अन्य व्यक्ति, जिसका नाम अनीश है, उसने कहा—”हम अपनी शिकायत लेकर कहाँ जाएँ? कोई हमारी सुनता नहीं है। हमने NGO के साथ मिलकर इसका विरोध भी किया, लेकिन सरकार अनदेखा कर रही है। देखा जाए तो इस डंपिंग ग्राउंड को स्थानीय बस्ती के करीब होना ही नहीं चाहिए था। भारी मात्रा में हॉस्पिटल और मेडिकल का सामान वहाँ पर जलता है। काला धुआँ यहाँ पर उड़कर आता है। समस्या बड़ी है, लेकिन कोई इस पर ध्यान नहीं देता है।”

विरोध प्रदर्शन के बाद भी स्थिति वैसी ही
इस समस्या को लेकर कई गैर-सरकारी संगठनों और अन्य समूहों ने विरोध किया। लेकिन आज तक किसी का विरोध सफल नहीं रहा। ये विरोध होते रहे और इसकी ख़बरें अक्सर अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में पढ़ी और देखी गईं। ये विरोध आज भी रुका नहीं है। देवनार की समस्या को लेकर कई सामाजिक संगठन सालों से आवाज़ उठा रहे हैं। “कचरा हटाओ, ज़िंदगी बचाओ” जैसे नारे लेकर स्थानीय लोग और कार्यकर्ता कई बार सड़कों पर उतरे।
मैं एक ऐसे NGO या सामाजिक संगठन की तलाश में था जो यहाँ पर इस समस्या को लेकर विरोध प्रदर्शन कर चुका हो। इसी तलाश के चलते मेरी मुलाकात हुई ‘नौजवान भारत सभा’ के उन सदस्यों से, जिन्होंने देवनार की समस्या पर आवाज़ उठाई।

नौजवान भारत सभा के सदस्य अविनाश ने बताया कि “चुनाव आते ही नेता यहाँ आते हैं। वादा करते हैं कि डंपिंग ग्राउंड हटाया जाएगा, लेकिन काम वहीं का वहीं रह जाता है। सरकार और बीएमसी की नज़र में हम सिर्फ वोट हैं, इंसान नहीं। उनको लगता है कि गरीब इलाकों में रहने वाले लोग आवाज़ नहीं उठाएँगे। लेकिन हम चुप नहीं बैठेंगे।”
नौजवान भारत सभा के दूसरे सदस्य बबन ने कहा कि—”हमने तय किया है कि अब सिर्फ धरना-प्रदर्शन नहीं, बल्कि क़ानूनी लड़ाई भी लड़ी जाएगी। हम पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) दायर करेंगे और मेडिकल रिपोर्टें को सबूत के तौर पर पेश करेंगे। इसके साथ ही इलाक़े के नौजवानों को एकजुट करके बड़े पैमाने पर जनजागरण करेंगे। अगर आज इसे हल नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।”
देवनार डंपिंग ग्राउंड की समस्या सिर्फ कचरे का ढेर नहीं, बल्कि इंसानी ज़िंदगियों से जुड़ा सवाल है। नौजवान भारत सभा जैसे संगठन इस संघर्ष को सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं रखना चाहते, बल्कि इसे न्यायालय तक ले जा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि यह लड़ाई लंबी होगी, लेकिन इसे ऐसे ही छोड़ा नहीं जा सकता।

सरकार की प्रतिक्रिया और नए नियम
जब 2016 में इस डंपिंग ग्राउंड में भीषण आग लगी थी, तब सरकार और बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) हरकत में आई। कई घोषणाएँ की गईं, जैसे देवनार में कचरे को पूरी तरह बंद करने का वादा, वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट लगाने की योजना, बायोमाइनिंग प्रोजेक्ट्स के ज़रिए पुराने कचरे को हटाने का ऐलान, घर-घर जाकर सूखा और गीला कचरा अलग करने के आदेश आदि।
लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि इन योजनाओं का असर अभी बहुत सीमित दिखता है। रोज़ाना के हज़ारों टन कचरे को अब भी देवनार के पहाड़ पर ही डाला जा रहा है।
समस्या सिर्फ कचरे की नहीं, जागरूकता की भी है
सवाल उठता है कि आख़िर कचरे का बोझ इतना क्यों बढ़ रहा है? जवाब साफ है—शहर की आदतें। मुंबई के ज़्यादातर घरों में आज भी कचरा अलग-अलग नहीं किया जाता। प्लास्टिक, गीला कचरा, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट—सब एक साथ फेंक दिया जाता है। इससे रीसाइक्लिंग और सही निपटान नामुमकिन हो जाता है।

BMC बार-बार अपील करती है कि नागरिक कम से कम घर पर कचरे को अलग-अलग करें। लेकिन जब तक लोगों की आदतें नहीं बदलेंगी, तब तक देवनार का बोझ कम होना मुश्किल है।
देवनार डंपिंग ग्राउंड सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक आईना है। ऐसा आईना, जो हमें दिखाता है कि एक चमकते महानगर की नींव कितनी गंदी हो सकती है। यह कचरे का पहाड़ सिर्फ ज़मीन नहीं खाता, बल्कि लोगों की ज़िंदगी, सेहत और भविष्य भी निगल रहा है।
मुंबई को अगर सच में “स्वच्छ और आधुनिक” शहर बनाना है, तो सरकार को कड़े फ़ैसले लेने होंगे और नागरिकों को भी अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। सवाल सिर्फ यह नहीं है कि देवनार कब बंद होगा, बल्कि यह है कि मुंबईवासी कब जागेंगे? और राजनीतिक पार्टियाँ कब तक इसे सिर्फ राजनीतिक मुद्दा बनाए रखेंगी और इसके नाम पर वोट लेती रहेंगी?
रविंद्र मुंडेतिया मीडिया शोधकर्ता और लेखक हैं। समाज, राजनीति और शहरी मुद्दों पर गहन अध्ययन और लेखन करना उनका मुख्य कार्यक्षेत्र है। वे विशेष रूप से हाशिए पर खड़े समुदायों और पर्यावरणीय चुनौतियों को आवाज़ देने का काम करते हैं।