सुदीपा माथुर | ५ अगस्त २०२५
कोंकण के दिवेआगर गाँव का कांबले परिवार अब नहीं रहा। लेकिन उनकी कहानी हमें चेतावनी देती है कि अंधविश्वास किस तरह ज़िंदगियाँ निगल सकता है। गरीबी, बीमारी और कर्ज़ से टूटा यह परिवार एक ‘चमत्कारी बाबा’ के झांसे में आ गया और अंत में अपनी जान तक गंवा बैठा।
निराशा और अंधविश्वास
श्री कांबले मछुआरे थे। लेकिन समुद्र अब उनके लिए खाली जाल लौटाता था। घर चलाना मुश्किल हो गया था। ऊपर से इकलौता बेटा बीमार पड़ा था, जिसका कोई इलाज नहीं मिल रहा था। पुराना कर्ज़ अलग से सिर पर था। इन हालात में कांबले दंपति को लगने लगा कि उनका परिवार किसी श्राप से ग्रस्त है।
तभी गाँव में खबर फैली कि एक बाबा आए हैं, जिनके पास “पाताल लोक” की शक्तियाँ हैं और जो टोना-टोटका कर हर समस्या हल कर सकते हैं। हताश कांबले परिवार ने बाबा को अपना आख़िरी सहारा मान लिया।

चमत्कार की उम्मीद
बाबा ने दावा किया कि कांबले परिवार पर पूर्वजों का श्राप है। इसे तोड़ने के लिए मुर्गे की बलि, उसका खून और कुछ जड़ी-बूटियों वाला घड़ा आँगन में दबाना होगा। 14 दिन बाद घड़ा खोलने पर श्राप मिट जाएगा। इसके बदले बाबा ने 60,000 रुपये और अनाज माँगा।
कर्ज़ में डूबा कांबले परिवार भी आस्था और डर के बोझ तले झुक गया। श्रीमती कांबले ने अपने गहने बेच दिए और पैसे बाबा को सौंप दिए। पूर्वजों के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने यह सब किया।
टूटे सपने, टूटी ज़िंदगियाँ
14 दिन बाद जब घड़ा खोला गया, तो अंदर वही पुरानी चीज़ें थीं। कोई चमत्कार नहीं हुआ, न ही बेटे की बीमारी कम हुई। जब उन्हें यह अहसास हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है और उन्होंने बाबा से जवाब माँगा, तो उसने और बड़ी मुसीबत की धमकी दी।
कुछ ही दिनों बाद बिना इलाज के उनका बेटा चल बसा। उनका बुढ़ापे का सहारा अब नहीं रहा। टूटे दिल और बर्बाद जीवन के साथ श्रीमती कांबले ने फाँसी लगा ली और श्री कांबले ने ज़हर पी लिया।

अंधविश्वास की असली समस्या
यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है। यह उस गहरी सामाजिक समस्या की झलक है जहाँ गरीबी, बीमारी और निराशा अंधविश्वास की ज़मीन तैयार करते हैं।
अंधविश्वास हमेशा डर पर टिका होता है—श्राप का डर, बीमारी का डर, अकेलेपन का डर। ऐसे हालात में तांत्रिक और फर्जी बाबा लोगों की कमज़ोरी का फायदा उठाते हैं।
रास्ता क्या है?
इस घटना से हमें कुछ स्पष्ट सबक मिलते हैं:
- शिक्षा और जागरूकता – गाँव-गाँव तक यह संदेश पहुँचाना होगा कि बीमारी का इलाज डॉक्टर से होता है, न कि टोने-टोटके से।
- सख्त कानून – अंधविश्वास और काला जादू के नाम पर धोखा देने वालों को कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।
- पीड़ितों के लिए सहारा – ऐसे परिवारों को मनोवैज्ञानिक और सामाजिक मदद देना ज़रूरी है, ताकि वे शर्म और डर से बाहर आ सकें।
कांबले परिवार की मौत हमें आईना दिखाती है—अंधविश्वास सिर्फ पैसे नहीं, बल्कि ज़िंदगियाँ भी छीन लेता है। यह समाज के लिए चेतावनी है कि हमें शिक्षा, विज्ञान और सहारे पर भरोसा करना होगा, न कि नकली बाबाओं की झूठी बातों पर। अगर अब भी चुप रहे, तो और कई कांबले परिवार इसी अंधकार में डूबते रहेंगे।
सुदीपा माथुर एक मीडिया शोधकर्ता हैं, जो यह तलाशती हैं कि संस्कृति, पूर्वाग्रह और सामाजिक यथार्थ किस तरह जीवन को आकार देते हैं। उनकी लेखनी रूढ़ियों को चुनौती देती है और छिपे हुए अन्यायों को उजागर करती है।